पार्षद सतीश कश्यप ने की भद्रकाली मंदिर क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन सुविधाओं की मांग

पार्षद सतीश कश्यप ने की भद्रकाली मंदिर क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन सुविधाओं की मांग

-केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट को दिल्ली में सौंपा मांग पत्र

पहाड़वासी

देहरादून। भारतीय जनता पार्टी के ब्रह्मपुरी देहरादून के पार्षद सतीश कश्यप ने डाट काली मंदिर पर उत्तराखंड की सीमा की ओर प्राचीन भद्रकाली मंदिर पर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सौंदर्यकरण तथा सुविधाओं की मांग की है।उ कश्यप ने विगत दिवस दिल्ली में केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री और अल्मोड़ा से सांसद अजय भट्ट से मुलाकात कर इस संबंध में पत्र मंत्री को सौंपा। पत्र में भद्रकाली मंदिर के आसपास इको पार्क विकसित करने , पैदल चलने हेतु ट्रैक बनाने, कैंटीन तथा सुलभ शौचालय जैसी सुविधाएं देने की मांग की गई है , पर्यटन राज्य मंत्री ने कश्यप को इस संबंध में शीघ्र से शीघ्र कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है।

कश्यप ने राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी को टावर लगाकर मोबाइल सिग्नल उपलब्ध कराने हेतु एवं नई डॉट टनल के निर्माण व पुरानी डाट गुफा के जीर्णोद्धार हेतु पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत महापौर सुनील उनियाल गामा व विधायक धर्मपुर विनोद चमोली का आभार व्यक्त किया है द्य कश्यप के अनुसार नई योजनाओं का सदैव स्वागत किया जाना चाहिए पर इसी के साथ हमें अपनी हेरिटेज को भी बचा कर रखना होगा, इसीलिए उन्होंने यह पहल की है , कश्यप के अनुसार वे शीघ्र ही मुख्यमंत्री से मिलकर पुरानी डाट गुफा को स्टेट हेरिटेज टनल घोषित करने पर वार्ता करेंगे। कश्यप ने बताया कि विधायक विनोद चमोली ने भी इस संबंध में पर्यटन राज्य मंत्री को पत्र लिखा है जिसे उन्हें सौंप दिया गया है।

पार्षद के अनुसार उपरोक्त स्थान के विकसित होने के बाद देहरादून में आने वाले पर्यटकों तथा स्थानीय लोगों को रॉबर्ट केव (गुच्छूपानी), सहस्त्रधारा, लछीवाला व मसूरी के साथ ही एक और पर्यटन स्थल मिल जाएगा तथा सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी। पार्षद ने कहा कि वह शीघ्र ही इस संबंध में वन विभाग तथा मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से भी वार्ता करेंगे। गौरतलब है कि डाट काली मंदिर पर नई टनल बनने से पूर्व उत्तराखंड की तरफ वाली सीमा पर स्थित भद्रकाली मंदिर पर 24 घंटे रौनक बनी रहती थी, जो अब ज्यादातर गाड़ियों के नई टनल से गुजरने के कारण समाप्त हो चुकी है, जबकि इस स्थान का उत्तराखंड वासियों विशेषकर देहरादून वासियों के लिए ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व है।

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